परम शूरवीर श्री गातोड़ जी चौहान
वीरवर श्री गातोड़ जी चौहान
!! ॐ श्री गातोड़राय नमः !!
जय श्री गातोडिया श्याम
वीरवर श्री गातोड़ जी चौहान 11वी सदी के महान योद्धा थे। जिन्होंने महमुद गजनवी जैसे आक्रमणकारियों से लोहा लिया व गायों कि रक्षार्थ अपने आप को बलिदान कर दिया । गातोड़जी चौहान मारवाड़ में “गोगाजी” के नाम से प्रशिद्ध है और मेवाड़ में “गातोड़जी” (गातरोड़जी) के नाम से प्रशिद्ध है । गातोड़जी चौहान को कई भक्त मेवाड़ में “गौवर्धनसिंह चौहान” भी कहते है ।
इनका जन्म ददरेवा (चुरू) में चौहान वंश के राजपूत राजा जेवरसिंह के घर विक्रम संवत 1003 में भाद्रपद कृष्णा नवमी को हुआ था। इनकी माता का नाम रानी बाछल था । इनका विवाह श्रीयल के साथ हुआ था । इनके दो भाई अर्जन और सर्जन थे । इनका जन्म गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से हुआ था । गुरु गोरखनाथ ने इन्हें गुरु दीक्षा प्रदान की व साथ ही साथ आध्यात्मिक शिक्षा, योग शिक्षा, व आयुर्वेद की शिक्षा प्रदान की। गुरु गोरखनाथ ने ही इन्हें सांप का जहर उतारने की कला भी सीखाई थी। इन्हें सांपों का देवता भी कहते है ।
वर्तमान में हनुमानगढ जिले के नोहर तहसील में स्थित गोगामेडी (घुरमेड़ी) स्थान पर इनकी समाधि बनी हुई हैं । यहां श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से भाद्रपद कृष्ण अमावस्या तक पशु मेला आयोजित होता है। गोगा मेड़ी में फिरोजशाह द्वारा निर्मित मस्जिदनुमा दरगाह हैं । जहां हिन्दु-मुस्लिम दोनों ही धर्मो के लोग बड़ी ही श्रृद्धा के साथ मत्था टेकते हैं । यहां की भस्म से विभिन्न रोगों का ईलाज होता है ऐसा लोगों का विश्वास हैं ।
इनसे (गोगाजी) से युद्ध करते हुए महमुद गजनवी ने तो यहाँ तक कह दिया कि “यह तो जाहर पीर है” अर्थात साक्षात् देवता के समान प्रकट होता है। तब हे इनका नाम जाहर पीर गोगाजी पड़ा ।
इनका एक स्थान उदयपुर जिले के जयसमंद झील के पास वीरपुरा नामक स्थान पर भी हैं । लोगो का ऐसा मानना हैं की यहाँ पर स्वयं भगवान शंकर ने गोगाजी को स्थान दिया था अर्थात शिवलिंग यहाँ से अंर्तध्यान हो गया और वहां जाहर वीर गोगाजी महाराज ने समाधि ले ली थी, आज भी उस स्थान पर गातोड़ जी का मन्दिर बना हुआ हैं परन्तु वहाँ पर शिवलिंग नही हैं । यहाँ पर आने वाले भक्त उस समाधी वाले स्थान पर जहा गडडानुमा (बांबी) स्थान बना हुआ है वह अपने हाथ पर केसर लगाकर उन्हें (गातोड़ जी) को अर्पण करते हैं।