नीम
नीम के पत्तों का उबला हुआ पानी अगर सब्जियों, फसलो पर कीटनाशक के स्थान पर छिड़काव करें तो कीटों का तो नाश होता है।
फोड़े-फुंसी की समाप्ति-आयुर्वेद के अनुसार इसकी सूखी छाल को पानी के साथ घिसकर फोड़े फुंसी पर लेप लगाने से बहुत लाभ मिलता है और धीरे-धीरे इनकी समाप्ति हो जाती है।
पेट एवं चर्म रोगों में लाभदायक :-देखने में आया है कि नीम की नई कोपलो को आज भी ग्रामिण लोगों चैत्र मास में खाना बेहद पसंद करते हैं क्योंक एक माह तक लगातार ऐसा करने पर इसे पेट की बीमारियों के अतिरिक्त वर्षा ऋतु में उत्पन्न होने वाली त्वचा संबंधी परेशानियों से भी निजात पाई जा सकती है।
दातों की सुरक्षा- प्रत्येक जगह मिलने वाली नीम की पतली टहनी के रूप में मौजूद दातुन भी व्यक्ति के लिए बड़ी उपयोगी सिध्द होती है। इसके निरंतर प्रयोग से दांतों की सफाई के साथ साथ दांतों में लगने वाले किड़ों से भी रक्षा की जा सकती है। दांतों को मजबूती मिलती है।
कुष्ठ रोग आराम- चिकत्सकों के शब्दों में नीम के कोमल एवं नवीन पत्ते कुष्ठ रोग में काफी लाभप्रद है। इससे व्यक्ति के कुष्ठ रोग को शांत किया जा सकता है।
रक्त संबंधी विकार से मुक्ति- वैसे तो नीम के बीजों का तेल किंचित कड़वा ही होता है जो मनुष्य के खून संबंधि विकारों का नाश करता है। इसके अलावा यह ज्वर, कफ और पित्त जैसे रोगों का भी भली भांति शमन करता है।
फोड़े-फुंसी की समाप्ति-आयुर्वेद के अनुसार इसकी सूखी छाल को पानी के साथ घिसकर फोड़े फुंसी पर लेप लगाने से बहुत लाभ मिलता है और धीरे-धीरे इनकी समाप्ति हो जाती है।
पेट एवं चर्म रोगों में लाभदायक :-देखने में आया है कि नीम की नई कोपलो को आज भी ग्रामिण लोगों चैत्र मास में खाना बेहद पसंद करते हैं क्योंक एक माह तक लगातार ऐसा करने पर इसे पेट की बीमारियों के अतिरिक्त वर्षा ऋतु में उत्पन्न होने वाली त्वचा संबंधी परेशानियों से भी निजात पाई जा सकती है।
दातों की सुरक्षा- प्रत्येक जगह मिलने वाली नीम की पतली टहनी के रूप में मौजूद दातुन भी व्यक्ति के लिए बड़ी उपयोगी सिध्द होती है। इसके निरंतर प्रयोग से दांतों की सफाई के साथ साथ दांतों में लगने वाले किड़ों से भी रक्षा की जा सकती है। दांतों को मजबूती मिलती है।
कुष्ठ रोग आराम- चिकत्सकों के शब्दों में नीम के कोमल एवं नवीन पत्ते कुष्ठ रोग में काफी लाभप्रद है। इससे व्यक्ति के कुष्ठ रोग को शांत किया जा सकता है।
रक्त संबंधी विकार से मुक्ति- वैसे तो नीम के बीजों का तेल किंचित कड़वा ही होता है जो मनुष्य के खून संबंधि विकारों का नाश करता है। इसके अलावा यह ज्वर, कफ और पित्त जैसे रोगों का भी भली भांति शमन करता है।
केसर
अगर सर्दी लग गई हो तो रात्रि में एक गिलास दूध में एक चुटकी केसर और एक चम्मच शहद डालकर यदि मरीज को पिलाया जाये तो उसे अच्छी नींद आती है।
त्वचा रोग होने पर खरोंच और जख्मों पर केसर लगाने से जख्म जल्दी भरते हैं।
बाल्यकाल में शिशुओं को अगर सर्दी जकड़ ले और नाक बंद हो जाये तो मां के दूध में केसर मिलाकर उसके माथे और नाक पर मला जाये तो सर्दी का प्रकोप कम होता है और उसे आराम मिलता है।
त्वचा रोग होने पर खरोंच और जख्मों पर केसर लगाने से जख्म जल्दी भरते हैं।
बाल्यकाल में शिशुओं को अगर सर्दी जकड़ ले और नाक बंद हो जाये तो मां के दूध में केसर मिलाकर उसके माथे और नाक पर मला जाये तो सर्दी का प्रकोप कम होता है और उसे आराम मिलता है।
गंजे लोगों के लिये तो यह संजीवनी बूटी की तरह कारगर है। जिनके बाल बीच से उड़ जाते हैं, उन्हें थोड़ी सी मुलहठी को दूध में पीस लेना चाहिए। तत्पश्चात् उसमें चुटकी भर केसर डाल कर उसका पेस्ट बनाकर सोते समय सिर में लगाने से गंजेपन की समस्या दूर होती है।
रूसी की समस्या हो या फिर बाल झाड़ रहे हों, ऐसी स्थिति में भी उपरोक्त फार्मूला अपनाना चाहिए।
पुरुषों में वीर्य शक्ति बढ़ाने हेतु शहद, बादाम और केसर लेने से फायदा होता है।
ल्यूकोरिया एवं हिस्टीरिया की स्थिति में ग्रहण करने से पीड़ित महिला को फायदा पहुंचता है।
केसर की पेसरी गर्भाशय की तकलीफ दूर करने में भी प्रयुक्त की जाती है।
सावधानी-
चूंकि यह उष्णतावर्धक है, अत: कम से कम सेवन करना चाहिये। गर्भावस्था में इसका उपयोग कदापि नहीं करना चाहिए।
रूसी की समस्या हो या फिर बाल झाड़ रहे हों, ऐसी स्थिति में भी उपरोक्त फार्मूला अपनाना चाहिए।
पुरुषों में वीर्य शक्ति बढ़ाने हेतु शहद, बादाम और केसर लेने से फायदा होता है।
ल्यूकोरिया एवं हिस्टीरिया की स्थिति में ग्रहण करने से पीड़ित महिला को फायदा पहुंचता है।
केसर की पेसरी गर्भाशय की तकलीफ दूर करने में भी प्रयुक्त की जाती है।
सावधानी-
चूंकि यह उष्णतावर्धक है, अत: कम से कम सेवन करना चाहिये। गर्भावस्था में इसका उपयोग कदापि नहीं करना चाहिए।
पपीता
वात का शमन करें : रोजाना पपीते का सेवन करने से वात का शमन होता है तथा अपान-वायु शरीर से बाहर निकल जाती है।आंखों की रोशनी में वृध्दि : निरंतर पपीता खाने से आंखों की रोशनी बढ़ती रहती है और चश्मा पहनने की जरूरत महसूस नहीं होती।
गले के रोगों में फायदेमंद : अक्सर देखने में आया है कि पपीता खाने से गले की बढ़ी हुई ग्रंथियों को ठीक करने में मदद मिलती है। सो, इसके समाप्त करने हेतु पपीते को अमल में लाया जा सकता है। यकीनन, बेहद फायदा महसूस होगा।
ज्वर शमन हेतु उपयोगी : चिकित्सकों के मुताबिक, पपीते के पत्ते हमारे ज्वर शमन में बहुत ही लाभदायक होते हैं। इसलिए ज्वर का नाश करने के लिए भी पपीता काफी फायदेमंद है। क्योंकि ज्वर के वक्त हृदय की गति के साथ-साथ नाड़ी की गति भी अचानक बढ़ जाती है। अतएव दोनों को शांत करने हेतु पपीता मुफीद इलाज साबित हो सकता है।
मूत्राशय का शुध्दिकरण करें : अक्सर पपीता खाने से पेट तो बिल्कुल स्वच्छ रहता ही है। इसके अलावा, मूत्र साफ एवं शुध्द भी करता है। यह वृक्कों का शुध्दिकरण करता है। फलस्वरूप, यदि मूत्र कम मात्रा में आता है तो यह मूत्र की मात्रा को बढ़ाने में भी अपनी अहम भूमिका निभाता है।
किडनी की तकलीफ दूर करें : जिन व्यक्तियों को आए दिन किडनी की समस्या से दो चार होना पड़ता है, उन्हें रोजाना पपीते का सेवन करना चाहिए। इस प्रकार समस्या से निजात मिलती है।
पेट के कीड़े मारें : यदि आपके पेट में कीड़े हो गये हैं तो परेशान नहीं हों, बल्कि कच्चे पपीते का जूस पिए। सुबह-शाम दिन में दो बार सेवन करने से कीड़े स्वयं ही मर जायेंगे और परेशानी का समाधान हो जायेगा।
बवासीर का खात्मा : रोजाना खाली पेट पपीता खाने से बवासीर जैसे रोगों का नाश हो जाता है और व्यक्ति स्वस्थ दिखलाई देने लगता है।
कब्ज दूर करें : यदि पपीपे के ऊपर सेंधा नमक, जीरा पाउडर तथा नींबू लगाकर खाएं तो पेट की कब्ज खुद ब खुद दूर हो जाती है और पेट साफ होता हुआ नजर आने लगता है।
इस प्रकार पपीता शरीर की सप्त धातुओं की रक्षा करता हुआ रस और रक्त को पुष्ट करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है जिससे शरीर सदैव ही स्वस्थ बना रहता है।
हल्दी
एक गिलास गर्म मीठे दूध में एक चम्मच हल्दी पावडर मिलाकर पीने से शरीर की अंदरूनी चोट ठीक होती है। हल्दी मिला मीठा गर्म दूध सुबह-शाम लगातार पाँच दिन तक पीने से मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं। एक चुटकी हल्दी प्रतिदिन लेने से भूख बढ़ती है। इसका सेवन करने से आँतों में भी लाभ पहुँचता है। हल्दी त्वचा के परजीवी जीवाणुओं को नष्ट करती है। हल्दी की गाँठ को पानी के साथ पीसकर लेप तैयार करें और इसका उबटन नहाने से पूर्व लगा लें। एक हफ्ते में आपको त्वचा में निखार लगेगा। थोड़ी-सी हल्दी में पिसा हुआ कपूर, थोड़ा-सा सरसों का तेल मिलाकर लेप तैयार करने से त्वचा पर होने वाले रोग दूर हो जाते हैं।
बेसन में सरसों का तेल, हल्दी व पानी मिलाकर गाढ़ा लेप तैयार करें। इस घोल को चेहरे व पूरे शरीर पर अच्छी तरह लगाकर सूखने पर निकाल दें। त्वचा चमकदार हो जाएगी। मासिक के समय पेट दर्द के वक्त गरम पानी के साथ हल्दी की फँकी लेने से रक्त प्रवाह ठीक होता है और दर्द से राहत मिलती है। छोटे बच्चों को खाँसी-जुकाम होने पर आधा कप पानी में आधा छोटा चम्मच हल्दी पावडर, थोड़ा-सा गुड़, अजवाइन, एक लौंग मिलाकर उबालें। अच्छी तरह उबल जाने पर छानकर गुनगुना-सा हो तब चम्मच से पिला दें। बच्चे को न केवल सर्दी-जुकाम से राहत मिलेगी, बल्कि पेट में यदि कब्ज होगा तो वह भी ठीक हो जाएगा। मैथी दाने और हल्दी का काढ़ा भी मासिक साफ होने के लिए लिया जा सकता है। सूजन पर हल्दी व चूने का लेप करने से सूजन उतर जाता है। बुजुर्गों का कहना है कि बगैर हल्दी का खाना अपशगुन होता है। दरअसल ऐसा उसके औषधीय गुणों की ही वजह से कहा जाता है। हल्दी एक प्रिजरवेटिव का ही काम करती है, इसीलिए अचार के मसाले का अभिन्न अंग है। नवजात शिशु को दिए जाने वाले 'घसारा' अर्थात 'घुट्टी' में आंबा हल्दी भी उसके आयुर्वेदिक गुणों की वजह से ही दी जाती है। तेज जुकाम होने पर हल्दी की धूनी अर्थात गरम जलते कंडे पर हल्दी जलाकर उससे उठने वाले धुएँ को सूँघने से सर्दी-जुकाम से राहत मिलती है।
कहा जाता है कि एक चम्मच हल्दी प्रतिदिन सेवन करने से भूख बढ़ती है। अमाशय एवं आँतों की सफाई होती है। कटने या लगने पर रक्तस्राव को रोकने के लिए भी शुद्ध हल्दी पावडर चोट पर लगाया जाता है, जिससे रक्तस्राव तुरंत रुक जाता है। हल्दी एक अच्छा एंटीसेप्टिक एवं एंटीबायोटिक है, जिसका उल्लेख आयुर्वेद में भी किया गया है।